पहली बार बस्तर हारकर भी सत्ता में आई थी भाजपा
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पहले चरण के तहत 12 नवंबर को 18 सीटों पर वोटिंग है। इन सीटों में बस्तर संभाग की 12 और राजनांदगांव की 6 सीटें हैं। 2013 विधानसभा चुनाव से पहले यह माना जाता था कि प्रदेश की सत्ता का रास्ता बस्तर से ही होकर जाता है। लेकिन पिछली बार के चुनाव में यह मिथक टूट गया।
2003 और 2008 में जिसने बस्तर जीता, उसकी सरकार बनी
2003 और 2008 में बस्तर संभाग की 12 सीटों में से 11 भाजपा के पास थीं। इसी तरह 2003 और 2008 में राजनांदगांव जिले की छह में से चार सीटें भाजपा के खाते में गईं। इस बार पहले चरण में जिन 18 सीटों पर मतदान होना है, उनमें से पिछले दो चुनावों में 15 सीटें भाजपा ने जीती थीं और वह सत्ता में भी आई थी।
2013 में बस्तर और मुख्यमंत्री के जिले में हारी थी भाजपा
2013 में दोनों इलाकों में भाजपा को झटका लगा था। बस्तर में पार्टी को सिर्फ 4 सीटें मिलीं। वहीं, राजनांदगांव में कांग्रेस चार, जबकि भाजपा सिर्फ दो सीटें जीत पाई। मुख्यमंत्री रमन सिंह राजनांदगांव से चुनाव लड़ते हैं।
राज्य की 29 आदिवासी बहुल सीटों में 13 इन्हीं इलाकों में
प्रदेश में सबसे ज्यादा सीटें एसटी वर्ग के प्रभाव में हैं। कुल 90 में से 29 सीटें एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इसमें से 11 बस्तर संभाग में ही हैं। दो सीटें राजनांदगांव में आती हैं। इन पर छत्तीसगढ़ गठन से पहले भी हमेशा से कांग्रेस की जबरदस्त पकड़ रही। छत्तीसगढ़ बनने के बाद भाजपा ने दो बार यहां कांग्रेस को पछाड़ा, लेकिन 2013 में कांग्रेस ने इन इलाकों में वापसी की। ऐसे में इस बार के चुनाव में पहले चरण की सीटें निर्णायक साबित हो सकती हैं।
शहरी इलाकों में पिछड़ गई कांग्रेस
2013 में कांग्रेस ने बस्तर में तो वापसी की लेकिन मैदानी इलाकों में उसे काफी नुकसान हुआ। रायपुर, जशपुर और कोरिया में जहां कांग्रेस को बढ़त की उम्मीद थी, वहां पार्टी हार गई। नेता प्रतिपक्ष रवींद्र चौबे, कद्दावर आदिवासी नेता बोधराम कंवर और रामपुकार सिंह भी हार गए।
जहां मोदी ने प्रचार किया, वहां मिली बड़ी हार
2013 के चुनाव के दौरान मोदी लहर चली। लेकिन छत्तीसगढ़ की एक ऐसी सीट भी है, जहां जनता ने इस लहर को नकार दिया। दरअसल, पिछले चुनाव में अंबिकापुर में प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण दिया था। यह सीट पहले से कांग्रेस के कब्जे में थीं। कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव को फिर से टिकट दिया और उन्होंने मोदी लहर के बावजूद भाजपा प्रत्याशी को करीब 20 हजार वोटों से हरा दिया। जबकि, 2008 में उनकी जीत का अंतर महज 965 वोटों का था।
जमकर हुआ था नोटा का इस्तेमाल
छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में 2013 के दौरान पहली बार नोटा यानी ‘इनमें से कोई नहीं का’ भी जमकर इस्तेमाल हुआ। 90 में से 35 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बाद जनता ने नोटा को चुना। बस्तर की सभी 12 सीटों पर नोटा का जमकर इस्तेमाल हुआ।
2003 और 2008 में जिसने बस्तर जीता, उसकी सरकार बनी
2003 और 2008 में बस्तर संभाग की 12 सीटों में से 11 भाजपा के पास थीं। इसी तरह 2003 और 2008 में राजनांदगांव जिले की छह में से चार सीटें भाजपा के खाते में गईं। इस बार पहले चरण में जिन 18 सीटों पर मतदान होना है, उनमें से पिछले दो चुनावों में 15 सीटें भाजपा ने जीती थीं और वह सत्ता में भी आई थी।
2013 में बस्तर और मुख्यमंत्री के जिले में हारी थी भाजपा
2013 में दोनों इलाकों में भाजपा को झटका लगा था। बस्तर में पार्टी को सिर्फ 4 सीटें मिलीं। वहीं, राजनांदगांव में कांग्रेस चार, जबकि भाजपा सिर्फ दो सीटें जीत पाई। मुख्यमंत्री रमन सिंह राजनांदगांव से चुनाव लड़ते हैं।
राज्य की 29 आदिवासी बहुल सीटों में 13 इन्हीं इलाकों में
प्रदेश में सबसे ज्यादा सीटें एसटी वर्ग के प्रभाव में हैं। कुल 90 में से 29 सीटें एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इसमें से 11 बस्तर संभाग में ही हैं। दो सीटें राजनांदगांव में आती हैं। इन पर छत्तीसगढ़ गठन से पहले भी हमेशा से कांग्रेस की जबरदस्त पकड़ रही। छत्तीसगढ़ बनने के बाद भाजपा ने दो बार यहां कांग्रेस को पछाड़ा, लेकिन 2013 में कांग्रेस ने इन इलाकों में वापसी की। ऐसे में इस बार के चुनाव में पहले चरण की सीटें निर्णायक साबित हो सकती हैं।
शहरी इलाकों में पिछड़ गई कांग्रेस
2013 में कांग्रेस ने बस्तर में तो वापसी की लेकिन मैदानी इलाकों में उसे काफी नुकसान हुआ। रायपुर, जशपुर और कोरिया में जहां कांग्रेस को बढ़त की उम्मीद थी, वहां पार्टी हार गई। नेता प्रतिपक्ष रवींद्र चौबे, कद्दावर आदिवासी नेता बोधराम कंवर और रामपुकार सिंह भी हार गए।
जहां मोदी ने प्रचार किया, वहां मिली बड़ी हार
2013 के चुनाव के दौरान मोदी लहर चली। लेकिन छत्तीसगढ़ की एक ऐसी सीट भी है, जहां जनता ने इस लहर को नकार दिया। दरअसल, पिछले चुनाव में अंबिकापुर में प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण दिया था। यह सीट पहले से कांग्रेस के कब्जे में थीं। कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव को फिर से टिकट दिया और उन्होंने मोदी लहर के बावजूद भाजपा प्रत्याशी को करीब 20 हजार वोटों से हरा दिया। जबकि, 2008 में उनकी जीत का अंतर महज 965 वोटों का था।
जमकर हुआ था नोटा का इस्तेमाल
छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में 2013 के दौरान पहली बार नोटा यानी ‘इनमें से कोई नहीं का’ भी जमकर इस्तेमाल हुआ। 90 में से 35 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बाद जनता ने नोटा को चुना। बस्तर की सभी 12 सीटों पर नोटा का जमकर इस्तेमाल हुआ।
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