एक पुल जिसने दो मुल्कों की तकदीर बदल दी
स्वीडन के लोग इसे Öresundsbron कहते हैं और डेनमार्क के लोग Øresundsbroen. दुनिया के कई लोग इसे सिर्फ़ 'द ब्रिज' के नाम से जानते हैं.
यह नाम कई पुरस्कार जीत चुके उस नॉर्डिक नोयर ड्रामा से लिया गया है जिसका मंचन 100 से ज्यादा देशों में हो चुका है.
यह पुल विशाल है. 82 हजार टन वजन का यह पुल 204 मीटर लंबे धातु के दो खंभों पर टिका है.
यह समुद्र सतह के ऊपर भी है और नीचे भी. सुरंग सहित इसकी लंबाई 16 किलोमीटर है और यह यूरोप के सबसे बड़े पुलों में से एक है.
यह पुल स्वीडन के तीसरे सबसे बड़े शहर माल्मो को डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन से जोड़ता है. इसने ओरेसंड की खाड़ी में लंबी नौका यात्रा या विमान सेवा की ज़रूरत को खत्म कर दिया है.
द ब्रिज' नाटक के चौथे सीजन में काम कर चुके 31 साल के एक्टर पोंटस टी पैग्लर माल्मो के उत्तर में एक कस्बे में रहते हैं. वह उन दिनों को याद करते हैं जब इस पुल का निर्माण हो रहा था.
"हम माल्मो तक जाते थे, लेकिन आज की तरह डेनमार्क नहीं जा पाते थे. यह बहुत दूर था और बड़ी लंबी यात्रा होती थी."
1990 के दशक में स्वीडन में बुनियादी सुविधाओं में निवेश स्टॉकहोम और गुटेनबर्ग जैसे बड़े शहरों में सीमित था. पैग्लर जैसे लोग उपेक्षित महसूस करते थे.
सन् 2000 में ओरेसंड ब्रिज खुल जाने से यहां की आर्थिक स्थिति बदलने लगी. सीमा के पार आना-जाना आसान हो गया. सफ़र में कम समय लगने लगा.
नाव के लिए करीब घंटे भर कतार में लगने की मजबूरी खत्म हो गई. लोग कार से सिर्फ़ 10 मिनट में सफ़र पूरी करने लगे. सेंट्रल माल्मो और सेंट्रल कोपेनहेगन के बीच ट्रेन से यह सफ़र सिर्फ़ 34 मिनट का है.
यह पुल जल्द ही यूरोपीय सीमा-पार सहयोग का प्रतीक बन गया.
पैग्लर कहते हैं, "यह सचमुच बहुत तेज़ है. आप वहां जाकर उसी दिन लौट सकते हैं. मेरे खयाल से यह सबसे बड़ा बदलाव है. आप वहां वीकेंड पर या किसी और वजह से रूकना चाहें तो भी बहुत आसान है."
कितने मुसाफ़िर
2017 में औसत रूप रोजाना 20,361 गाड़ियां इस ब्रिज पर चलीं और करीब 14 हजार लोगों ने रोजाना ट्रेन से सफ़र किया.
पहली छमाही में शुरू की गई अस्थायी पहचान जांच से सफ़र में समय ज्यादा लग रहा था. इसके बावजूद मुसाफ़िरों की यह तादाद रिकॉर्ड की गई.
पुल खुलने से पहले करीब 6000 लोग रोज नाव से यह सफ़र करते थे.
माल्मो में रहने वाली 43 साल की निकोले फ्रीबर्ग एक आईटी कंपनी में मैनेजिंग डायरेक्टर हैं. वह पिछले 12 साल से कोपेनहेगन में काम करने जाती हैं.
फ्रीबर्ग कहती हैं, "मुझे लगता है कि अगर यह पुल न होता तो मेरा करियर बहुत सुस्त होता."
"मैंने जिन कंपनियों में काम किया है वे इंटरनेशनल हैं. मैं खुद भी मल्टी-कल्चरल हूं- आधी पेरू की, आधी स्वीडन की. दिन में मैं माल्मो से ज्यादा बड़े और व्यस्त शहर में रहती हूं और रात में शांति और सुकून के लिए घर लौट आती हूं."
पुल पर चलने वाले ज्यादातर लोग स्वीडन के हैं, लेकिन यह डेनमार्क के लोगों को भी मौका देता है कि वह स्वीडन जाएं और वहां के लोगों से मिलें.
34 साल के नील मरे कोपेनहेगन में रहते हैं. वह सभी नॉर्डिक देशों के स्टार्ट-अप्स में निवेश करते हैं और ओरेसंड की खाड़ी के दोनों तरफ बिजनेस मीटिंग करते हैं.
मरे कहते हैं, "दुनिया में ऐसी कोई दूसरी जगह नहीं होगी जहां सिर्फ़ आधे घंटे की दूरी पर दो ताक़तवर इको सिस्टम मौजूद हों. मैं इस पुल की वजह से दो अलग देशों के स्टार्ट-अप्स को देख पाता हूं, जिसका मुझे लाभ होता है."
यह नाम कई पुरस्कार जीत चुके उस नॉर्डिक नोयर ड्रामा से लिया गया है जिसका मंचन 100 से ज्यादा देशों में हो चुका है.
यह पुल विशाल है. 82 हजार टन वजन का यह पुल 204 मीटर लंबे धातु के दो खंभों पर टिका है.
यह समुद्र सतह के ऊपर भी है और नीचे भी. सुरंग सहित इसकी लंबाई 16 किलोमीटर है और यह यूरोप के सबसे बड़े पुलों में से एक है.
यह पुल स्वीडन के तीसरे सबसे बड़े शहर माल्मो को डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन से जोड़ता है. इसने ओरेसंड की खाड़ी में लंबी नौका यात्रा या विमान सेवा की ज़रूरत को खत्म कर दिया है.
द ब्रिज' नाटक के चौथे सीजन में काम कर चुके 31 साल के एक्टर पोंटस टी पैग्लर माल्मो के उत्तर में एक कस्बे में रहते हैं. वह उन दिनों को याद करते हैं जब इस पुल का निर्माण हो रहा था.
"हम माल्मो तक जाते थे, लेकिन आज की तरह डेनमार्क नहीं जा पाते थे. यह बहुत दूर था और बड़ी लंबी यात्रा होती थी."
1990 के दशक में स्वीडन में बुनियादी सुविधाओं में निवेश स्टॉकहोम और गुटेनबर्ग जैसे बड़े शहरों में सीमित था. पैग्लर जैसे लोग उपेक्षित महसूस करते थे.
सन् 2000 में ओरेसंड ब्रिज खुल जाने से यहां की आर्थिक स्थिति बदलने लगी. सीमा के पार आना-जाना आसान हो गया. सफ़र में कम समय लगने लगा.
नाव के लिए करीब घंटे भर कतार में लगने की मजबूरी खत्म हो गई. लोग कार से सिर्फ़ 10 मिनट में सफ़र पूरी करने लगे. सेंट्रल माल्मो और सेंट्रल कोपेनहेगन के बीच ट्रेन से यह सफ़र सिर्फ़ 34 मिनट का है.
यह पुल जल्द ही यूरोपीय सीमा-पार सहयोग का प्रतीक बन गया.
पैग्लर कहते हैं, "यह सचमुच बहुत तेज़ है. आप वहां जाकर उसी दिन लौट सकते हैं. मेरे खयाल से यह सबसे बड़ा बदलाव है. आप वहां वीकेंड पर या किसी और वजह से रूकना चाहें तो भी बहुत आसान है."
कितने मुसाफ़िर
2017 में औसत रूप रोजाना 20,361 गाड़ियां इस ब्रिज पर चलीं और करीब 14 हजार लोगों ने रोजाना ट्रेन से सफ़र किया.
पहली छमाही में शुरू की गई अस्थायी पहचान जांच से सफ़र में समय ज्यादा लग रहा था. इसके बावजूद मुसाफ़िरों की यह तादाद रिकॉर्ड की गई.
पुल खुलने से पहले करीब 6000 लोग रोज नाव से यह सफ़र करते थे.
माल्मो में रहने वाली 43 साल की निकोले फ्रीबर्ग एक आईटी कंपनी में मैनेजिंग डायरेक्टर हैं. वह पिछले 12 साल से कोपेनहेगन में काम करने जाती हैं.
फ्रीबर्ग कहती हैं, "मुझे लगता है कि अगर यह पुल न होता तो मेरा करियर बहुत सुस्त होता."
"मैंने जिन कंपनियों में काम किया है वे इंटरनेशनल हैं. मैं खुद भी मल्टी-कल्चरल हूं- आधी पेरू की, आधी स्वीडन की. दिन में मैं माल्मो से ज्यादा बड़े और व्यस्त शहर में रहती हूं और रात में शांति और सुकून के लिए घर लौट आती हूं."
पुल पर चलने वाले ज्यादातर लोग स्वीडन के हैं, लेकिन यह डेनमार्क के लोगों को भी मौका देता है कि वह स्वीडन जाएं और वहां के लोगों से मिलें.
34 साल के नील मरे कोपेनहेगन में रहते हैं. वह सभी नॉर्डिक देशों के स्टार्ट-अप्स में निवेश करते हैं और ओरेसंड की खाड़ी के दोनों तरफ बिजनेस मीटिंग करते हैं.
मरे कहते हैं, "दुनिया में ऐसी कोई दूसरी जगह नहीं होगी जहां सिर्फ़ आधे घंटे की दूरी पर दो ताक़तवर इको सिस्टम मौजूद हों. मैं इस पुल की वजह से दो अलग देशों के स्टार्ट-अप्स को देख पाता हूं, जिसका मुझे लाभ होता है."
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